ये सिलसिला मेरा
युं गलियरों से पाँव पटक कर गुज़रना तेरा,
वो सुन कर हर बार तेरी ओर मुड जाना मेरा ।
यूँ रहना इंतज़ार रोज़ आने का तेरा,
वो मेरा रुक जाना जब वक़्त हो जाने का तेरा।
यूँ अपने दोस्तों के साथ नज़र-अनदाज़ निकल जाना तेरा,
वो तुझे देखते ही दोस्तों को हाल-ए-दिल सुनना मेरा।
यूँ हर रोज़ तुझे देखना उसी वक़्त वही जाना तेरा,
वो मेरा हर रोज़ वही उसी वक़्त पहुँच जाना मेरा।
यूँ उस पल अचानक चलते चलते थम जाना तेरा,
वो तेरे मुलाक़ात-इ-उम्मीद में जल जाना मेरा।
तुन कुछ बार कोई सवाल लेकर मेरे पास आना तेरा,
वो मेरा जवाब खुद ही सवाल बन जाना मेरा।
यूँ एक दिन किसी बात पे मुझे देख देख मुस्कुराना तेरा,
वो देख देख मेरे बेखयाली में किसी और से टकराना मेरा।
यूँही अब सोचता हूँ करना हैं अब मुझे कुछ फैसला तेरा,
पर ये सोच कर रुक जाता हूँ की रुक न जाए ये सिलसिला मेरा।
- अभिषेक सिंघ
- Abhishek Singh